ये घर तुम
बिन घर नहीं लगता ....
ये दीवारें है कह
रही , कि चाहती है ये तेरा
सहारा..
ये आइना भी तेरी,
सूरत से संवारना है चाहता ..
ये चिलमन भी है
कह रहा कि तुम छुप के शर्मा लो कुछ घड़ी इससे भी ..
कि चूल्हा भी
रोटी में स्वाद ना है दे रहा ...
ये घर तुम बिन घर
नहीं लगता ..
ये चौखट भी तेरे
लांघने का है इंतज़ार कर रही ..
कि बेना भी हवा
को लौटने को है कह रहा ..
दिये ने भी
कर ली अब अँधेरे से दोस्ती और,
बिस्तर से सपनों
से नाता सब तोड़ दिया...
तेरी कमी में
दिवाली भी बिन चमक की रहती है..
होली भी कुछ
बेरंग सी है बीत जाती..
क्या कहूँ बस ईंट
की कुछ दीवारों से हूँ घिरा मैं..
ये घर तुम बिन घर
नहीं लगता ....
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