Friday, December 23, 2011

उनके आँखों में कुछ नमी सी थी....

तकलीफ कम है इस बात कि  जो वो छोड़ के चले दिए थे महफ़िल में भरी हाथ हमारा ...
गम तो इस बात का है कि उस वक़्त भी उनके आँखों में कुछ नमी सी थी....

माँ तुम लौट आओ .... कि बड़ी याद आती है तुम्हारी..


यह कविता हमने अपनी माँ के लिए लिखी है..
इस पूरी दुनिया में उनसे प्यारा कोई ना था, ना कोई होगा..
माँ .. I LOVE YOU

जब कभी दर्द होता है माँ  बड़ी  याद आती है ,ये उनके लिए लिए ..
जिनके पास बस याद है ..माँ नहीं ..
बुरा लगे दोस्तों तो माफ़ कर देना ...

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बहुत दिन हो गए इन आँखों को चैन की नींद देखे..
माँ तुम लौट आओ .... कि बड़ी याद आती है तुम्हारी..
यह सब बड़े झूठे है..कहते है कि तुम पास में हो...
हाँ अगर हो तो बस एक एहसास में क्यूँ हो..
माँ .. मैं अब मैं हर सुबह जल्दी उठ जाता हूँ...
कसम से तुम्हरी .. बिना कुछ कहे बाबु जी हर बात मन जाता हूँ..
बड़ा सुना लगता है .यह आँगन बिना तेरी आवाज के..
आवाज सी कुछ दब गयी..मेरी हर एक बात में..
बाबु जी ..कुछ ना कहते पर... आँख पे नमी है उनकी हर पल..
सब कुछ है बदला सा यहाँ..खामोश सी है हर हल चले..
मैं ....खुद को तो संभाल लू सच में...पर छोटू बड़ा जिद करता है..
कहता है माँ को बुला दो वापस .. गोद में सोने का मन करता है..
यह लिखा रहा हूँ.. और आँख में आंशू से ना जाने क्यूँ आ रहे है..
वादा किया तुमसे जो ना रोने का जो.. बूँद बूँद उसे झुठला रहे है..

सच में माँ क्यूँ इतनी दूर चली गयी हो..फ़िक्र ना सताती है तुमको क्या हमारी .. 
माँ तुम लौट आओ .... कि बड़ी याद आती है तुम्हारी..

बदनाम इश्क की बारिश में

भीग जा मेरे बदनाम इश्क की बारिश में तू एक बार ..

कि बड़ी सर्द तो है मौसम  में , पर गर्म साँसे यह मेरी , तुझे महफूज़ रखेंगी...
लोग ज़माने के बड़े साफ़ सुथरे से बनते है, तेरी मौजूदगी पे इतराज़ तो लिख देंगे ..

हमे कर जुदा आज के... ज़माने में कल  नाम साथ लेके ..ये खुद  कहानी भी बड़ी खूब रखेंगी..

खफ़ा उनकी नज़र

खफ़ा उनकी नज़र कुछ ऐसे हुई हमसे आज...
कि जैसे करीब से कोई तूफ़ान दिल के गुजरा हो..
नज़र बस देखती रह गयी उनके कान से टूटी बाली को..
कि जैसे रेत पे मेरे दिल अरमान कोई बिखरा हो ....

उन्हें तन्हाई में लिखी एक किताब में...

उन्हें तन्हाई में लिखी एक किताब में कुछ छिपा के हम ने रखा है ...

उनके नाम के पन्नो के बीच में एक हंसी गुलाब दबा के हम ने रखा है ...
पर आज वो गुलाब भी बेरंग है..और वो नज़्म भी ख़ामोश सी है ..
बस एक ख्वाब संग मैं जिन्दा हूँ.. उनके होंठो पे जो सजा के हम ने रखा है ...

कसम ही कुछ ऐसी दे डाली थी....

जो दूर रूठा चाँद है मुझसे...उस चाँद से यह कहते है
इए चाँद तेरी चान्दिनी बिन गुमनाम से से हम कुछ रहते है.
यह बदकिस्मती है इश्क कि जो नाम मेहँदी   पे किसी और का है तेरी..
पर नाम उस से कैसे मिटाओगे मेरा,जिनकी सांसो में हम ही रहते है ...


अदा हो जाती हर दुआ जो तुम लौट आते..
कि मंदिरों कि दीवारे भी मुझे अब आशिक है पुकारती ...


वोह पल बिता हुआ भी ,अनजान सा सवाल एक  है पूछता मुझसे ..
कि जब वो खुद ही  कल बन चुकी है..तो क्यूँ मुझमे वो तश्वीर खोजा करते हो..


यह हंसी मेरे चेहरे की कुछ और नहीं बस एक एक धोखा है..
क्या करूँ  , जुदाई के दिन उसने कसम ही कुछ ऐसी दे डाली थी....



काश....

काश.... मेरा ख्वाब तेरी मुश्कान संग सोता ..
काश..... मेरी सुबह तेरे बंद आँखों की शर्म से होती..
काश ... यह घर तुम्हारी पायल की छन छन से गूंजता ..
काश ... हमारी खुशियाँ तेरे साथ में कुछ नर्म सी होती..
ऐ काश.. तुम होती... ऐ काश.. तुम होती..

बड़ी खामोश सी ये रात

बड़ी खामोश सी ये रात , कुछ गीत मिलन का है गा रही..

कि तू नहीं है तो क्या हुआ, तेरी याद को ही मेहमान बना लिया है हमने ...

हर लब्ज़ पे तेरे इश्क का नाम.....

यह सुहाना सफ़र मेरी मोहब्बत का एक कलम किताब का मोहताज नहीं,

दुआ हुई होती कुबूल जो मेरे रब से तो,हर लब्ज़ पे तेरे इश्क का नाम लिखा होता .

तेरी याद आ जाती है..

छलकी हुई शराब  से .. तेरी याद आ जाती है..
बेवफाई की हर एक बात से....तेरी याद आ जाती है ..
घुमशुदा से तेरे इश्क का, रखा है गुलाब दबा के कहीं...
पर आज  छुपी उस किताब से ..तेरी याद आ जाती है...
तश्वीर की जरुरत नहीं तेरी ..आईने ने जो रूबरू करना है..
ज़माना तो तुझे कहेगा ,कातिल भी मासूम भी..
ज़माना तो आखिर ..ज़माना है ...
इन घावो के मीहते स्वाद से.. तेरी याद आ जाती है..
छलकी हुई शराब  से .. तेरी याद आ जाती है..
बेवफाई की हर एक बात से....तेरी याद आ जाती है ..

ए खुदा सही वक़्त पे.........

ए खुदा सही वक़्त पे दो शब्द इज़हार के कह देता उनसे काश ...
तो आज तन्हाई में यूँ उनकी तश्वीर को निहारते ना फिरते ..

वोह भीग टूटी छत में

वोह भीग टूटी छत में .... पूरी रोटी मुझे खिला देती थी..
आधी साड़ी खुद ओढ़ लेती थी.. आधी में मुझे छिपा लेती थी.

उनकी नज़र का..........

उनकी नज़र का  क्या गुनाह मेरे दोस्त इस दिल पे..
एक इसी कातिल ने तो रोक रखा है सांस लेने पे  हमको...

कुछ हंसी सा ख्व़ाब...

कुछ हंसी सा ख्व़ाब मेरे तकिये तले सोया था कल...

कि  नींद कभी इतनी खूबसूरत पहले लगी थी हम को ...

गुमनाम शायर

हमें  पता है की वक़्त के साथ लोग बादल जाते है साकी..
पर हम ने कभी उन्हें लोगो में गिना ही कहा था ....
......गुमनाम शायर  

Sunday, August 7, 2011

एक साथ खोज लेता ..







तू आज पास होता तो एक साथ खोज लेता ..
दबे से हुए है कुछ राज़ दिल में , संग तेरे वो राज़ खोज लेता ...
मेरी हथेली में सिमट बैठा है वो साथ कुछ लम्हों का..
साथ होता तू अगर तो ,मुठ्हियों में वो साथ खोज लेता ..
तू आज पास होता तो एक साथ खोज लेता ..

अगर ये शहर को कहते है खुबसूरत तो क्यूँ भला..
लग रहा है क्यूँ एक अँधेरा सा बिन तेरे...
मैं रोशनी को हूँ कब से खोजता इस चांदनी में ..
पर मिल नहीं रहा है सवेरा बिन तेरे ..

है छुपी सी इन लबों में कुछ बात मेरे..
रुक जरा ये पल तो, मैं वो बात खोज लेता ..
तू आज पास होता तो एक साथ खोज लेता ..

यह पेड़ ,बारिश और बिजलियाँ ,
तेरी याद ,खाव्हिश और तितलियाँ ..
कुछ पतंगे है मुझसे कह रहे,
आंखे तेरी और तेरी अठखेलियाँ ..

नींद कब कि है खो गयी इस रात में..
तू रुक जरा तो साथ तेरे,वो रात खोज लेता ..
तू आज पास होता तो एक साथ खोज लेता ..

शशि' दिल से ...

Thursday, July 28, 2011

जन्नत है ऐसा मरने में ...











दिन आज है उनकी शहनाई का ,
पर खामोशी भी बंद है एक घुमनाम से कमरे में ...
उनके डोली के साथी सा जनाज़ा मेरा निकलेगा,
दुल्हन सा उनको देखेंगे .. जन्नत है ऐसा मरने में ...

शशि' दिल से ....

Wednesday, June 15, 2011

मज़ा ही कुछ और था ...


आज लम्हे बीत गए है वोह कुछ पुराने से ...जो कभी हमारे सबसे हसीं पल हुआ करते थे...आज इतनी भीड़ है कि खुद को खुद से भी नहीं मिला पते है हम सभी...अकेले जब रहता हू तो बीते पल याद आते रहते है..तो कुछ पंक्तियाँ लिख दी है..उम्मीद है पसंद आएँगी ...







कितनी भी बड़ी मिठाई की दुकान पे चले जाओ ,पर माँ से छुपा के खाने का मज़ा ही कुछ और था ...

लाखो कम लो आज इस अनजान सी दुनिया में ,पर पापा कि जेब से एक का सिक्का चुराने का मज़ा ही कुछ और था ...


वो छोटी को छेड़ना और कहना कि कितनी मोटी हो तुम ,
हर बात पे बन्दर जैसी कितना पागल सा रोती हो तुम ,
पर आज कितना ही सोले जी भर के ,छोटी के उठाने पे फिर से सो जाने का मज़ा ही कुछ और था ...
कितनी भी बड़ी मिठाई की दुकान पे चले जाओ ,पर माँ से छुपा के खाने का मज़ा ही कुछ और था ...

वो रातो को माँ की लोरी , वो उनका प्यार से दूध का ग्लास लाना,
वो मेरा लाख मना करना ,फिर समझाना भुझालाना ,
पर आज अकेले में करवट बदलते है,वोह माँ के गोद में एक झपकी भी पाने का मज़ा ही कुछ और था..
कितनी भी बड़ी मिठाई की दुकान पे चले जाओ ,पर माँ से छुपा के खाने का मज़ा ही कुछ और था ...


वो लेके किराये कि साइकिल और जाना सड़को पे बिन डरे ,
वो पचास पैसे का बर्फ गोला और एक रुपए के रसभरे ,
आज बिसलेरी की बोतले से ही दोस्ती है ,पर कल का वो टोटी में मुह लगाने का मज़ा ही कुछ और था...
कितनी भी बड़ी मिठाई की दुकान पे चले जाओ ,पर माँ से छुपा के खाने का मज़ा ही कुछ और था ...

वो पापा का मेले में ले जाना , वो मेरा बैट बाल की जिद करना,
वो उनका मुझको डांटना ,और मेरा वही पे रूठ जाना ,

वो फिर रात में कहानी की किताब लाना,
वो सुनते सुनते मेरा वही सो जाना,

वो मुश्कुराहत ही कुछ और थी ,
वो चाहत भी कुछ और थी ,

जोश था ,उमंग थी ,
रंग था ,तरंग थी ,


न ही इतनी भीड़ थी ,न ही इतना शोर था ,
पीपल कि ठंडी छाँव थी ,आँगन में नचा मोर था ,

आज कितना भी याद कर लू मैं वो वक़्त तो है गुम गया ,
इस भीड़ में शैल खो गया ,इस वक़्त संग थम गया ,

आज अकेले बैठे कमरे में पिज्जा रखा हो सामने ,पर माँ के हाथ की रोटी को खाने में मज़ा ही कुछ और था ....
कितनी भी बड़ी मिठाई कि दुकान पे चले जाओ ,पर माँ से छुपा के खाने का मज़ा ही कुछ और था ...

'शशि' दिल से ......

Tuesday, June 14, 2011

इश्क....


अब अगर छोड़ के जा रहे ही हम को, तो सुन लो हिना...

यह दिल भी, तुम्हारी विदाई के दिन ,कुछ गीत प्यार के गा रहा होगा ...

बस
फर्क कुछ इतना सा होगा ,मेरी साज़ में उस दिन हिना...

कि कहीं फूल डोली का तो, कही फूल जनाज़े का गा रहा होगा...

Monday, June 13, 2011

यूँ तुम..


यूँ तुम आये थे कभी ....

लगता था यह शाम तुमसे है...यह चाँद तुमसे है...

पर कितना गलत था मैं...

क्यूंकि शाम का रंग भी वही है...और चाँद भी कुछ वैसा ही शांत है...

पर एक तुम ही नहीं हो...एक अरसे से पर फिर भी लगता है... कि जैसे...

तुम आये थे अभी...

Thursday, May 26, 2011

मोहे दर्शन दे दो राम !!!!!!!!!!!

कल रात पटना के श्री महावीर मंदिर में कीर्तन के समय अचानक मन कुछ शब्दों के साथ कुछ गुनगुनाने लगा..और पहली बार एहसास हुआ कि शक्ति हमारे ही मन में ही होती है और हम पता नहीं कहाँ -कहाँ खोजते रहते है...अब यही आवाज आती है मन से कि मोहे दर्शन दे दो राम ....







मोहे तुम्हरी याद सताये,

मोहे अब कछु समझ ना आये ,

मोहे दर्शन दे दो राम ....

मोहे दर्शन दे दो राम ....



पाँव में हमरे कांटे चुभ गये,

नयन ये मेरे आंश से भर गये,

ये दुनिया का अजब है खेला,
सब कोई अपने पाप में भर गये,


मोहे राह ना कोई दिखाये,

मोहे बात ना कोई सुझाये,

मोहे दर्शन दे दो राम,
मोहे दर्शन दे दो राम,


यह मंदिर है ठंडक देवे ,

मन के मेरे चीर पिरोये,

कष्ट हमारा इहे मिटे है,

जब चरनन में तुम्हरे सोवे,



तुम्हे हर एक सांस बुलाये,

मोहे तुम्हरी याद सताए,

मोहे दर्शन दे दो राम,

मोहे दर्शन दे दो राम....

Wednesday, February 9, 2011

गुंजन


रात काफी हो गयी थी ...कलम भी पता नहीं कौन सी दुश्मनी निकालने पे सवार है,बस कुछ पुराने नग्मे जुड जुड के कुछ कह जा रहे मेरी गुंजन से.........








कभी आती थी शाम आईने में तेरी झलक लेके ...
तेरी बिंदिया का वो लाल रंग ...तेरी आँखों का वो काजल ...
तेरे केशु की वो महक ...तेरे दामन जैसे कोई बादल...
कभी आती थी शाम आईने में तेरी झलक लेके ..

अभी कुछ दिनों पहले की बात तो लगती है ..
जब तू बैठ संग में ...चूड़ी के राग थी छेड़ती ...
कभी कुर्ते पे मेरे रंग डालती ..तो होंठो से मेरे खेलती ...
अभी कुछ दिनों पहले की बात तो लगती है ...

आ जा रहा हो जैसे पल मेरी खुशियों का मुझसे रूठ के ...

तेरी कुछ निशानी मेरे पास संभाल के रखी है ...
वो चाँद में साथ देखा एक सपना ...
एक रात ,एक दिन ,और कुछ पल का संग अपना ..
एक सिंदूर की डिबिया ,और एक काले रंग का धागा ,
एक जोड़ा लहंगा नीले रंग का ..माँ से था जो तुमने माँगा ..
एक किताब ,एक कहानी ,जो पढ़ती रात में साथ में ...
एक अंगूठी और सुनहरा कंगन रहता था जो दाहिने हाथ में ...
दो पल भी रखा है जो किनारे नदी बिताये थे ...
वो साज़ सारे रखे है जो आवाज़ में तेरी पाए थे ...
वो मुश्कुराहते भी है..कुछ अश्क़ मैंने रखे है ...
वो वक़्त गुज़रा रखा है ..वो नश्क मैंने रखे है ..
वो शाम पुरानी मेरे पास संभाल के रखी है ..
तेरी कुछ निशानी मेरे पास संभाल के रखी है ...

वो कल जो मेरा गा रहा गीत मुझसे रूठ के ..
आ जा रहा हो जैसे पल मेरी खुशियों का मुझसे रूठ के ...
बस अब दुआ ही कर सकता हूँ ...तेरी बेवफाई को भी मंजिल मिले ...
तू हँसे हर पल ,नज़र तेरी खुशियाँ पाए ,दिल मिले और दिल मिले ..
ख़ुशी मैं तलाश लूँगा ..लम्हे हो सच के या झूठ के ...
आ जा रहा हो जैसे पल मेरी खुशियों का मुझसे रूठ के ...
अब यही कहानी है जो मेरे साथ संभाल के रखी है ..
तेरी कुछ निशानी मेरे पास संभाल के रखी है ...

जैसे मेरे ख्वाबो को तेरी आई हो पलक लेके ..
कभी आती थी शाम आईने में तेरी झलक लेके ...
तेरी बिंदिया का वो लाल रंग ...तेरी आँखों का वो काजल ...

ये रात मेरे आँखों में दुल्हन के जैसे सजती है ...
अभी कुछ दिनों पहले की बात तो लगती है ..
जब तू बैठ संग में ...चूड़ी के राग थी छेड़ती ...

बात वो पुरानी है जो साथ संभाल के रखी है ..
तेरी कुछ निशानी मेरे पास संभाल के रखी है ...

शशि ' दिल से

Tuesday, February 8, 2011

"अनु है मेरी ......"


आज इतने दिनों बाद एक बात का एहसास हो गया कि जो सबसे खूबसूरत रचना होती है वो किसी और को कभी उतनी पसंद नहीं आती क्यूंकि जिस नजरिये से उसे आप देखते है वो कभी कोई और देख ही नहीं सकता,और उस ख़ूबसूरती में अलग ही नशा है जिसका दीदार के केवल आपके पहलु के करीब है.....कुछ ऐसे है मेरे एहसास और कुछ ऐसी
"अनु है मेरी ......"



कभी सच सी तो कभी ख्वाब सी ,
बारिश की बूँद सी नम या ,
अनकहे अनसुने सवालो के जवाब सी ,

गर्म सांस है मेरी या एक ठण्ड बर्फ है ,
है कोई जिंदगी ये या कहानियो का हिसाब है ,
जो किसी और ने ना पढ़ सकी ऐसी ही एक किताब है ,

क्या है ये कौन है ....जिंदगी जो सजाती है ...
अनु है मेरी ...हाँ ..अनु है मेरी ...


नील रंग साड़ी में ,मुश्कुराहते बिखेरती ,
एक गुलाब के लाल सी ,कुछ कहानिया समेटती ,

क्या है ये कौन है ...पास जो आ जाती है ..
अनु है मेरी ...हाँ ..अनु है मेरी ...

ये दिया जलाके प्यार का हर रात मेरे मंदिर में ,
पूजा करे वो इश्क की दो हाथ जोड़े मंदिर में ,


अगर खुद कभी मैं जिंदगी को लिख पाया ,
तो कलम पे उसका नाम होगा ,पन्नो में वही साया ,

क्या है ये कौन है ...हर साज़ जो सजाती है ..
अनु है मेरी ...हाँ ..अनु है मेरी ...

बड़ी रात को जग कर मैं ...उसके एह्साह की तकिये लिए ,
आँचल ओढ़ उस अंगडाई का ...नैनो से एक जाम पिए ,

नशे में मैं कुछ खो बैठा काश वो आये ,
पर सुबह पहले है आ जाती रात को बिन बताये ,

क्या है ये कौन है ...एक नज़्म जो सुनती है ..
अनु है मेरी ...हाँ ..अनु है मेरी ..

दूरियां हो भले ...करीब ना ही शायद हो सके ...
एह्साह की चादर लिए ...प्यार के कम्बल तले ...

ना सर्द होगी ...ना गर्म होगा ..
बस वो होगी और मैं हूँगा ...
ना कौम होगा ...ना धर्म होगा .
बस इश्क होगा और मैं हूँगा ...

अनंत में एक आस है ...आंशुओ में ही साथ है ,
जहाँ तलक वो ले चले ...उन रास्तो में ही साथ है ,

ना किसी के लिए कुछ लिखा ..ना किसी से कुछ कहा ..
बस पथ्थरो पे हाथ फेरा ...लकीरों ने है कुछ कहा ...

क्या है ये कौन है ...आंसुओ में सो जाती है ..
अनु है मेरी ...हाँ ..अनु है मेरी ...
क्या है ये कौन है ...इस नूर की बाती है .
अनु है मेरी ...हाँ ..अनु है मेरी ...
क्या है ये कौन है ..खो गया जो साथी है ..
अनु है मेरी ...हाँ ..अनु है मेरी ...

Monday, February 7, 2011

एक नाम दे बैठा ...


मैं इश्क में तेरे कुछ इस कदर खो बैठा ...
कि सुबह शाम को एक नाम दे बैठा ...

नज़र तेरी मेरे खोखले मन में यूँ बैठी ...
सवालो के अश्क़ से जैसे एक ज़ाम दे बैठा...

कभी करीब आती थी तो कभी दूर जाती थी...
तेरी आवाज़ थी या कोई रेशमी अंगडाई थी...
मैं ख्यालो में उलझ सुबह को मेरी एक शाम दे बैठा..
एक नाम दे बैठा ...

अब आ गयी अंत की बेला तो है ये लग रहा ...
कि मिलम तेरा ना हो तो बस दीदार ही हो जाये..
तड़पती साँसों को दर्द भरा एक पैग़ाम दे बैठा ॥
एक नाम दे बैठा ...

Thursday, January 20, 2011

तुम भी हो ...

एक रात वो थे बैठे ,और कह रहे थे की ...खफा है हम उनसे ...
और हम बस ये कह पाए की खफा तो तुम भी हो ....


जागे तो हम भी है ...जागे तो तुम भी हो ...
खफा जो मैं तुमसे हूँ ...खफा जो तुम भी हो ...

सजा ये कौन देगा ...तकलीफ ये किसको होगी ...
नमी में हम है ...नमी में तो तुम भी हो ....

आखिरी दर्द का एहसास सा है लगता तेरा दूर जाना ,
पास तो पर मैं हूँ तेरे ..और पास मेरे तुम भी हो ...

अब गर्म हवाएं इन साँसों की है दे रही दस्तक तुम को ...
सुनाई दे रही है हमे ये ..और रहे सुन तुम भी हो ...

बस अब करीब आ जाओ खामोश कर दो आहटे तकरार की ..
प्यार में तेरे मैं हूँ तेरे ..प्यार में मेरे तुम भी हो ...

शशि 'दिल से ...

Tuesday, January 18, 2011

तेरा हो जाता....

अश्क़ झलक उठते है इन आँखों से बेहिसाब,
जो मेरे शामियाने में है जिक्र तेरा हो जाता....

तू बेवफा न कद्र करती है संगेदिल ज़रा सा भी,
पास ज़रा जो आती तो हर अर्श तेरा हो जाता....

ये दिन कुछ ख़ास है ....

यह क्यों है मैं नहीं जानता ,पर बस कुछ ख़ास है इतना पता है ....
ये कविता ख़ास है...क्यूंकि ...
ये दिन कुछ ख़ास है...
ये दिन कुछ ख़ास है ....
जब करीब तेरे एक फूल गुलाब का आ जायेगा ,
दिल हो जायेगा खुश ,और तेरा ख्वाब मुश्कुरायेगा ,
दुआ में दिल से मेरे निकली एक आवाज है ...
कि हाँ ,
ये दिन कुछ ख़ास है ....

अरसे बाद ये दिन एक उम्मीद लेके आया है ,
कुछ पुराने रंग में एक साथ नया भी समाया है ,
कि अब मन्नते भी गुनगुनाती हर पल ये साज़ है ,
कि हाँ ,
ये दिन कुछ ख़ास है ....

कुछ आखिरी दिन के पल हो ; या ता -उम्र कि बात हो ,
खुशिया हो तेरे दामन में ;या उलझे से वो जस्बात हो ,
मैं हूँ ,था ,रहूँगा यही पे ,तुमपे जो हमको नाज़ है ,
कि हाँ ,
ये दिन कुछ ख़ास है ....

कभी ना आये जिंदगी में ग़म तेरे आँचल के करीब भी ,
तू हँसे ,ये दिन आये जो बार बार ,तो हम हो खुश -नसीब भी ,
ये क्यूँ लिखा ,कैसे ,ना पता ,बस दिल में छिपा एक राज़ है ,
कि हाँ ,
ये दिन कुछ ख़ास है ....

Thursday, January 6, 2011

वो साल आ जाता......


एक साल पहले वो साथ थी मेरे ,
एक साल पहले वो पास थी मेरे ,

अब छोड़ के चली गयी वो ,
दिल तोड़ के चली गयी वो ,

ह़र बार दिल में बस है ये सावाल आ जाता ,
समय फिर कुछ लौट जाता और वो साल आ जाता ,


अलाव तो है जल रहा ,और ये सर्दियां भी साथ है ,
पर दिल जले है भीतर जो ,उसका न कोई हिसाब है ,

कोशिश हूँ करता की दूर चला जाऊं उससे हर पर ,
पर बंद आँखों में है वो खूबसूरत ख्याल आ जाता ,
समय फिर कुछ लौट जाता और वो साल आ जाता ,

नए चेहरों में खोजता हूँ मैं बीता हुआ कल ,
आँखों में दर्द है और साँसों में एह्साह का दलदल ,

उतरता सा जा रहा हूँ मैं भीतर गहराई में रोक लूँ काश ,
बस सिमट जाती ये दुनिया मेरी जिंदगी में भूचाल आ जाता ,
काश ,ऐ काश ,
समय फिर कुछ लौट जाता और वो साल आ जाता ,

जिंदगी उसने छोड़ी क्यूँ पहले मुझसे ,
गिला खुदा से करे या करे शिकवा उनसे ,

हम तो अकेले पड़ गए एक आरजू लिए आँखों में ,
कि हिना रचेगी लाल रंग कि मेरे अंश के हाथों में ,

पर क्या नाराज़गी थी उस आकाश की मुझसे जो ,
जो खुशियाँ छीन के ले गए सारी मेरी मुझसे वो ,

वो मौत लौट जाती ,वो रंग लौट जाता ,
वो दर्द लौट जाता ,वो अंत लौट जाता ,

फिजा लौट आती ,महक लौट आती ,
ख़ुशी लौट आती ,चहक लौट आती ,

ये साल दूर जाता ,वो साल पास आता ,
वो साल लौटा तो ,वो शैल लौट आता ,


बड़े बिगड़ बैठे है हालात इस दिल के अब अन्दर ही अंदर ,
कुछ नहीं लौट सकता तो वापस बस वो हाल आ जाता ,
ऐ काश ,काश ,बस एक बार ,
समय फिर कुछ लौट जाता और वो साल आ जाता ,
वो साल आ जाता,

इन पन्नो पे

वो कहते हैं कि कैसे लिख लेते हो तुम बातें दिल की इन पन्नो पे.... मैं कह देता हूँ कि बस जी लेता हूं मैं बातें दिल की इन पन्...

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